श्रीराम जीवनी (Biography of Shri Ram)
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भगवान श्री राम में वे सभी गुण थे जो धर्म में बताये गये है | श्री राम वैदिक सनातन धर्म की जान आत्मा है |वेदों को मानने वाले श्री राम के परम भक्त है |
महान महाकाव्य रामायण जिन्हें महर्षि वाल्मीकिजी ने लिखा है, श्री राम मुख्य पात्र है | अवतरित हुए भगवानो में यह सबसे प्राचीन और ऊपर है | यह सबसे अच्छे उदारण है अच्छे बेटे , अच्छे पति होने के | भगवान् श्री विष्णु के यह 7 वे अवतार है | श्री राम असुर सम्राट लंकापति रावण से इस धरती को बचाने के लिए अवतरित हुए |श्री राम परिचय रावण को यह वरदान प्राप्त था की वो किसी भी देवी देवता के हाथो नहीं मर सकता है अत: भगवान विष्णु मानव रूप में इस धरा पर अवतरित हुए | श्री राम को मर्यादा पुरषोतम के नाम से भी जाना जाता है |
माँ सीता से विवाह :
मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर आयोजीत किया जिसमे देश विदेश से महबली राजाओ को न्योता दिया गया | श्री राम लखन और गुरु विश्वामित्र के साथ इस सम्मलेन में आये | यह घोषणा की गयी की जो कोई सबसे पहले भगवान् शिव की इस धनुष पर प्रत्यंशचा चढ़ाएगा , वही सीता से विवाह करने के पात्र होगा | सभी महाबली एक एक करते प्रत्यन करते रहे और विफल होते रहे | अंत में गुरु विश्वामित्र के आदेश से श्री राम ने यह कार्य किया और सीता से विवाह के पात्र बने |
वनवास :
राजा दशरथ के तीन रानियाँ थीं: कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। राम कौशल्या के पुत्र थे, सुमित्रा के दो पुत्र, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और कैकेयी के पुत्र भरत थे। राज्य नियमो से राजा का ज्येष्ठ लड़का ही राजा बनने का पात्र होता है अत: राम को अयोध्या का राजा बनना निश्चित था। कैकेयी जिन्होने दो बार दशरथ की जान बचाई थी और दशरथ ने उन्हें यह वर दिया था कि वो जीवन के किसी भी पल उनसे दो वर मांग सकती है। राम को राजा बनते हुए और भविष्य को देखते हुए कैकेयी चाहती थी उसका पुत्र भरत ही राजा बनें, इसलिए उन्होने राजा दशरथ द्वारा राम को 14 वर्ष का वनवास दिलाया और अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राज्य मांग लिया।
लक्ष्मण का कठोर फैसला
लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।
माँ सीता का हरण :
वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार, जब राम , सीता और लक्ष्मण कुटिया में थे तब एक हिरण की वाणी सुनकर सीता व्याकुल हो गयी। वह हिरण रावण का मामा मारीच था। उसने रावण के कहने पर सुनहरे हिरण का रूप बनाया। सीता उसे देख कर मोहित हो गई और श्रीराम से उस हिरण का शिकार करने का अनुरोध किया। श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और लक्ष्मण से सीता की रक्षा करने को कहा| मारीच श्रीराम को बहुत दूर ले गया। मौका मिलते ही श्रीराम ने तीर चलाया और हिरण बने मारीच का वध किया। मरते – मरते मारीच ने ज़ोर से “हे सीता ! हे लक्ष्मण” की आवाज़ लगायी| उस आवाज़ को सुन सीता चिन्तित हो गयीं और उन्होंने लक्ष्मण को श्रीराम के पास जाने को कहा | लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, पर अपनी भाभी की बात को इंकार न कर सके। लक्ष्मण ने जाने से पहले एक रेखा खींची, जो लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है।
आदर्श चरित्र :
राम के चरित्र में भारत की संस्कृति के अनुरूप पारिवारिक और सामाजिक जीवन के उच्चतम आदर्श पाए जाते हैं। उनमें व्यक्तित्वविकास,लोकहित तथा सुव्यवस्थित राज्यसंचालन के सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने दीनों, असहायों, संतों और धर्मशीलों की रक्षा के लिए जो कार्य किए, आचारव्यवहार की जो परंपरा क़ायम की, सेवा और त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया तथा न्याय एवं सत्य की प्रतिष्ठा के लिए वे जिस तरह अनवरत प्रयत्नवान् रहे, जिससे उन्हें भारत के जन-जन के मानस मंदिर में अत्यंत पवित्र और उच्च आसन पर आसीन कर दिया है।
महापराक्रमी योद्धा :
राम अद्वितीय महापुरुष थे। वे अतुल्य बलशाली, सौंदर्यनिधान तथा उच्च शील के व्यक्ति थे। किशोरावस्था में ही उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों में रत विश्वामित्र मुनि के परित्राणार्थ ताड़का और सुबाहु राक्षस का वध किया। राजा जनक की स्वयंवर सभा में उन्होंने शिव का वह विशाल धनुष अनायास ही तोड़ डाला जिसके सामने बड़े बड़े वीरपुंगवों को भी नतमस्तक होना पड़ा था। दंडक वन में शूर्पणखा के भड़काने से जब खर, दूषण, त्रिशिरादि ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया तो अकेले ही युद्ध करते हुए उन्होंने थोड़े समय में ही उनका विनाश कर डाला। किष्किंधा में एक ही बाण से राम ने सात तालवृक्षों का छेदन कर दिया और बाद में बड़े भाई के त्रास से उत्पीड़ित सुग्रीव की रक्षा के लिए बालि जैसे महापराक्रमी योद्धा को भी धराशायी कर दिया। लंका में रावण, कुंभकर्ण आदि से हुआ उनका युद्ध तो पराक्रम की पराकाष्ठा का ऐसा उदाहरण है जिसकी मिसाल अन्यत्र कठिनाई से ही मिलेगी।
भगवान राम के संदेश :
भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान राम ने हर काम एक मर्यादा में रहकर किया। फिर चाहे बिना किसी प्रश्न के अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करना हो या फिर वन में सीता हरण के बाद रावण का वध। रावण की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपने दुश्मन से बैर नहीं रखा बल्कि अपने भाई को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा। भगवान राम का चरित्र हमें माता- पिता की सेवा करना उनकी आज्ञा का पालन करना सिखाता है।