“ॐ भूः । ॐ भूवः । ॐ स्वः । ॐ महः । ॐ जनः ॐ तपः । ओम् सत्यं ।”
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अष्ट चक्र क्या है?
अथर्ववेद में ऋषि कहते है
अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।।
तस्मिन् हिरण्यये कोशे त्र्यरे त्रिप्रतिष्ठिते।
तस्मिन्यद्यक्षमात्मन्वत्तद्वै ब्रह्मविदो विदुः।। – अथर्ववेद 10/2/31-32
यानि हमारी जो शरीर है यह अष्ट चक्र और नव द्वारो की नगरी है. ये जो चक्र है वह कुण्डलिनी के दरवाजे हैं। कुण्डलिनी के पास पहुचने के लिए इन चक्रो का ताला लगा हुआ है। जब तक हम विहंगम योग की साधना के द्वारा इन तालो को नही खोलेंगे, तब तक हम कुण्डलिनी तक नही पहुंच सकते है। साथ ही हम इनको साधारण नेत्रों से भी नही देख सकते है, जिस प्रकार रोगो के अनेक प्रकार की किटाणुओ को देखने के लिए विशेष प्रकार के यंत्र की जरुरत होती है उसी प्रकार इनको देखने जानने के लिए विशेष प्रकार की साधना की जरूरत होती है और वह है विहंगम योग की विधिवत साधना।
आज पुरे विश्व में इन चक्रो के साधन के लिए अनेक प्रकार की साधनाए बतलायी जाती है जिनको चिर काल तक करने के बाद कुछ मिलता होगा परन्तु एक विहंगम योग ही आज पुरे विश्व में है जिसका साधक बहुत ही अल्प समय में अगर विधिवत साधन सेवा सत्संग करता है तो वह उसे प्राप्त कर लेता है।मनुष्य के शरीर में कुल मिलाकर 114 चक्र हैं। वैसे तो शरीर में इससे कहीं ज्यादा चक्र हैं, लेकिन ये 8 चक्र मुख्य हैं। आप इन्हें नाड़ियों के संगम या मिलने के स्थान कह सकते हैं। यह संगम हमेशा त्रिकोण की शक्ल में होते हैं। वैसे तो ‘चक्र‘ का मतलब पहिया या गोलाकार होता है। चूंकि इसका संबंध शरीर में एक आयाम से दूसरे आयाम की ओर गति से है, इसलिए इसे चक्र कहते हैं, पर वास्तव में यह एक त्रिकोण है।
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संत प्रवर कहते है – जब हम प्रचार के क्षेत्र में जाते है तो ऐसे अनेक साधको से मुलाकात होती है तो ये बताते है की मै इस चक्र को जागृत करने का प्रयास कर रहा हूँ, इस तरह की की मै साधना कर रहा हूँ। कुण्डलिनी के जागृत करने के लिए सुषुम्ना प्रवाह के लिए मै इन चक्रो को उर्धमुखी करना चाहता हूँ, इनको खिलाना चाहता हूँ और इस प्रकार मै साधना कर रहा हूँ। ऐसे बहुतेरे साधक मिलते है। तो ब्रम्हविद्या क्या कहती है विहंगम योग क्या कहता है।
स्वर्वेद की बाणी है
मुद्रा प्राणायाम सब, बंध करे नही संत।
गुरु प्रसाद खिले कमल, संत मता पर अंत।।विहंगम योग का साधक चक्रो को जगाने के लिए मुद्रा नही करता, बंध का अभ्यास नही करता, प्राणायाम का अभ्यास नही करता। वह प्राणायाम करता है स्वस्थ के लिए, प्राणो की शक्ति के विकाश के लिए, वह चक्रो को जगाने के लिए थोड़े ही प्राणायाम करता है। ये जो चक्र है वह तो विहंगम योग का साधक को स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। ये उर्धमुखी हो जाता है। जिस प्रकार सूर्यमुखी का फूल सूर्य के सामने आने पर खिल जाता है उसी प्रकार ब्रम्ह विद्या के प्रभाव से इसके ताकत से ये सारे चक्र उर्धमुखी हो जाते है वह तो विहंगम योग की विधिवत साधना के द्वारा ही हो जाता है। अलग से कुछ भी करें की आवस्कता नहीं है।
अब इन अष्ट चक्रो का संक्षिप्त विवरण –
1. मूलाधार चक्र – गुदा और मेढु के मध्य में मूलाधार चक्र है. वह चार दल के साथ सुशोभित है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र – लिंग मूल में स्वाधिष्ठान चक्र है और वह रक्त वर्ण छह दल से सुशोभित है।
3. मणिपूरक चक्र – नाभि स्थान में मणिपूरक चक्र है. वह हेम वर्ण दस दल करके सुशोभित है।
4. अनाहत चक्र – ह्रदय स्थान में अनाहत चक्र है. जो बारह दल युक्त उज्जवल रक्त वर्ण से शोभायमान है और वह प्राण वायु के आधार है।
5. विशुद्ध चक्र – विशुद्ध चक्र कंठ स्थान में है और वह सुवर्ण के समान सुशोभित है।
6. ब्रम्हरन्ध्राख्य चक्र – जिह्वा के मूल स्थान में ब्रम्हरन्ध्राख्य चक्र है।
7. आज्ञा चक्र – भ्रूमध्य में आज्ञा चक्र है. इसमें सुन्दर श्वेत वर्ण दो पात्र है।
8. सहस्त्रार चक्र – ब्रम्हरन्ध्र स्थान में सहस्त्रार चक्र अर्थात सहस्त्र दल कमल है।